पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड। नैनीताल हाईकोर्ट ने कालागढ़ बांध क्षेत्र में अवैध रूप से रह रहे 213 परिवारों को विस्थापित करने के लिए उत्तराखंड सरकार को स्पष्ट योजना पेश करने का निर्देश दिया है। कोर्ट की खंडपीठ — जिसमें न्यायमूर्ति नरेंद्र और न्यायमूर्ति आलोक मेहरा शामिल हैं — ने सरकार को 5 मई तक नोटिस दाखिल करने का समय दिया है।
जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान सामने आया कि ये परिवार दशकों से वन और सिंचाई विभाग की अतिक्रमित भूमि पर निवास कर रहे हैं। कोर्ट को बताया गया कि इस मुद्दे पर उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के अधिकारियों के बीच बैठक हुई थी, लेकिन उत्तर प्रदेश ने पुनर्वास को लेकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया।

उत्तराखंड की जिम्मेदारी, यूपी का इनकार
हाईकोर्ट में पेश प्रधान स्थायी अधिवक्ता सी.एस. रावत ने बताया कि बांध का अधिकांश क्षेत्र भले ही उत्तर प्रदेश में आता हो, लेकिन अतिक्रमित भूमि उत्तराखंड की सीमा में है। इसलिए वहां रहने वालों को हटाने की जिम्मेदारी उत्तराखंड के बिजली और वन विभागों की बनती है। कोर्ट को यह भी बताया गया कि पौड़ी जिले के जिलाधिकारी पहले ही इन परिवारों को नोटिस जारी कर चुके हैं।
रिटायर्ड कर्मचारियों ने किया अतिक्रमण
रिपोर्ट के मुताबिक, 1960 में उत्तर प्रदेश सरकार ने बांध निर्माण के लिए हजारों हेक्टेयर भूमि वन विभाग से अधिग्रहित की थी। निर्माण के बाद कुछ भूमि वापस कर दी गई, लेकिन उस पर रिटायर्ड कर्मचारियों और अन्य ने अतिक्रमण कर लिया। अब सरकार इन अतिक्रमणकारियों को हटाकर बांध क्षेत्र को खाली कराना चाहती है।
हाईकोर्ट ने दिया एक सप्ताह का समय
कोर्ट ने कहा कि चूंकि यह मामला वर्षों से लंबित है और अब स्पष्ट कार्रवाई की आवश्यकता है, इसलिए सरकार को विस्थापन की ठोस योजना प्रस्तुत करनी होगी। इस उद्देश्य के लिए एक सप्ताह की अतिरिक्त समयसीमा निर्धारित की गई है।
क्या आगे होगा?
अब नजरें उत्तराखंड सरकार की उस योजना पर टिकी हैं, जिसमें यह बताया जाएगा कि इन 213 परिवारों को कैसे, कब और कहां पुनर्वासित किया जाएगा। इस मुद्दे पर स्थानीय राजनीति और सामाजिक संगठनों की प्रतिक्रियाएं भी आने की संभावना है।