Dehradun: उत्तराखंड के सरकारी स्कूलों में शिक्षा व्यवस्था गहरी चिंता का विषय बन गई है। राज्य के 2090 राजकीय हाईस्कूल और इंटर कॉलेज बिना स्थायी प्रधानाचार्य या प्रधानाध्यापक के संचालित हो रहे हैं। इससे साफ है कि राज्य की शिक्षा प्रणाली नेतृत्वविहीन हो गई है, जिसका सीधा असर छात्रों की पढ़ाई और शैक्षणिक गुणवत्ता पर पड़ रहा है।
RTI से हुआ खुलासा
यह जानकारी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी संगठन पिथौरागढ़ के मंत्री पंकज भट्ट द्वारा सूचना के अधिकार (RTI) के तहत मांगी गई जानकारी से सामने आई है। माध्यमिक शिक्षा निदेशालय के लोक सूचना अधिकारी आरआर सोलियाल ने राज्य के हाईस्कूल और इंटर कॉलेजों में प्राचार्यों की नियुक्ति स्थिति से संबंधित जानकारी दी।

हाईस्कूल की स्थिति भयावह
उत्तराखंड में कुल 910 राजकीय हाईस्कूल हैं, लेकिन इनमें से 831 स्कूलों में प्रधानाध्यापक का पद रिक्त है। यानी सिर्फ 79 स्कूलों में ही स्थायी प्रधानाध्यापक तैनात हैं।
- चंपावत और अल्मोड़ा जिलों में एक भी हाईस्कूल में प्रधानाध्यापक नहीं है।
- पिथौरागढ़ में केवल एक स्कूल में प्रधानाध्यापक है।
- पौड़ी गढ़वाल में 116 में से 109 स्कूलों में,
- टिहरी में 108 में से 98 स्कूलों में,
- चमोली में 73 में से 72 स्कूलों में,
- देहरादून में 71 में से 51 स्कूलों में,
- रुद्रप्रयाग में 28 में से 27 स्कूलों में,
- उत्तरकाशी में 52 में से 46 स्कूलों में,
- यूएसनगर में 66 में से 57 स्कूलों में,
- नैनीताल में 69 में से 59 स्कूलों में,
- बागेश्वर में 32 में से 29 स्कूलों में पद रिक्त हैं।
इंटर कॉलेजों में भी कमी बेहद गंभीर
राज्य के 1385 इंटर कॉलेजों में से 1180 कॉलेजों में प्रधानाचार्य नहीं हैं।
- टिहरी गढ़वाल में 192 में से 172 कॉलेजों में पद रिक्त।
- अल्मोड़ा में 166 में से 163 कॉलेजों में।
- पिथौरागढ़ में 128 में से 123 कॉलेजों में।
- चमोली में 127 में से 118 कॉलेजों में।
- नैनीताल में 120 में से 83 कॉलेजों में।
- देहरादून में 96 में से 43 कॉलेजों में।
- पौड़ी गढ़वाल में 186 में से 169 कॉलेजों में।
- रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी, हरिद्वार, बागेश्वर, चंपावत, और यूएसनगर जैसे जिलों में भी स्थिति चिंताजनक बनी हुई है।
प्रभारी शिक्षकों पर बढ़ा बोझ
राज्य में पहले से ही शिक्षकों की भारी कमी है, ऐसे में बिना स्थायी नेतृत्व के प्रभारी प्रधानाचार्य और हेडमास्टरों पर अतिरिक्त बोझ आ गया है। इससे न सिर्फ प्रशासनिक कामकाज प्रभावित हो रहा है, बल्कि छात्रों की शिक्षा पर भी प्रतिकूल असर पड़ रहा है।
क्या बोले शिक्षा विशेषज्ञ?
शिक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि “बिना नेतृत्व के स्कूल चलाना किसी जहाज को बिना कप्तान के चलाने जैसा है। इससे अनुशासन, योजना और शिक्षण की गुणवत्ता बुरी तरह प्रभावित होती है।”
सरकार की चुप्पी पर सवाल
प्रदेश में हजारों पद वर्षों से खाली हैं, लेकिन सरकार की ओर से स्थायी नियुक्तियों को लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। शिक्षा विभाग पर अब दबाव बढ़ रहा है कि इन पदों को जल्द भरा जाए ताकि राज्य की शिक्षा व्यवस्था को पटरी पर लाया जा सके। राज्य सरकार को चाहिए कि वह प्राथमिकता के आधार पर प्रधानाचार्यों और प्रधानाध्यापकों की भर्ती प्रक्रिया शुरू करे, ताकि शिक्षा व्यवस्था में नेतृत्व और गुणवत्ता बहाल हो सके। अन्यथा आने वाले वर्षों में उत्तराखंड के छात्रों को इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है।